पिछले कुछ सालों में, महानगरों या टीयर I शहरों की बजाय छोटे कस्बों और शहरों जिन्हें टीयर II और टीयर III शहरों के रूप में भी जाना जाता है, में रियल एस्टेट सेक्टर ने ज्यादा वृद्धि की है. केन्द्र सरकार की हाउसिंग फॉर ऑल और स्मार्ट सिटीज जैसी योजनाएं इन कस्बों और शहरों में रियल एस्टेट सेक्टर की वृद्धि को गति देगी. टीयर I शहरों में जमीन की कमी, निर्माण और जमीन खरीद में आने वाली अत्यधिक लागत, प्रॉपर्टी की आसमान छूती कीमतें, कम होती मांग, बुनियादी ढ़ांचे की कमी और जीवनयापन की लागतों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी ने उपभोक्ताओं और निर्माताओं, दोनों को टीयर II और टीयर III शहरों की ओर रुख करने के लिए मजबूर कर दिया है. इन्वेस्टमेंट के नजरिए से भी देखें तो वर्तमान समय में इन शहरों में कीमतों में धीमी बढ़ोत्तरी और अपेक्षाकृत बेहतर संभावनाएं देखने को मिल रही हैं.
Apart from the spill-over demand from metros and Tier-I cities, there are various advantages which Tier-II and III cities offer to the end-users (buyers as well as investors) such as:
आर्थिक संस्थान
अधिकतर टीयर-II और टीयर-III शहरों में स्किल आधारित निर्माण इंडस्ट्रीज जैसे कि ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, फार्मा और केपिटल गुड्स, सुस्थापित हैं. इन छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों के अलावा, बहुत से बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट, विशेष रूप से IT/ITES की बड़ी कंपनियों ने रियल एस्टेट की उचित कीमत, कम कीमतों में अच्छे लेबर की उपलब्धता, अनुकूल सरकारी नीतियों और अन्य खर्चों में कमी के कारण इन शहरों में अपने परिसरों की स्थापना शुरू कर दी है. लोगों की निरंतर बढ़ती अतिरिक्त आय ने कॉरपोरेट के साथ-साथ डेवलपर्स को भी इन बढ़ते बाजारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है.
सरकारी प्रोग्राम
जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन, हाउसिंग फॉर ऑल और स्मार्ट सिटी जैसे कार्यक्रमों को महानगरों से जनसंख्या दबाव कम करने और इन शहरों में निर्माण प्रेरित करने के लिए लागू किया गया है, इनका उद्धेश्य भौतिक अवसंरचना, स्वास्थ्य सुविधाओं और शैक्षिक सुविधाओं, किफायती आवास और रोजगार केंद्र जैसी सामाजिक सुविधाओं के संदर्भ में संपूर्ण विकास की प्राप्ति है.
इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास
सरकार की सक्रिय पहल के कारण इन शहरों में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों, फ्लाईओवर, बाईपास, औद्योगिक कॉरिडोर, मेट्रो और बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के रूप में बेहतर बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ है. बेहतर कनेक्टिविटी और आसान आवाजाही ने लोगों के लिए इन शहरों को अधिक सुलभ और परेशानी मुक्त बना दिया है.
रियल एस्टेट ट्रेंड
एंड यूजर्स के लिए इन शहरों में तुलनात्मक रूप से कम कीमत पर बड़े भूमि संसाधनों की उपलब्धता, कम श्रम और कच्चे माल की लागत और निर्माण की तेज गति आदि जैसे बहुत से फायदे मौजूद हैं. इसके अलावा, स्थिर कीमत वृद्धि और बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप डेवलपर्स के साथ-साथ इन्वेस्टर्स को भी अपने इन्वेस्टमेंट पर अच्छा रिटर्न प्राप्त हो रहा है. ये शहर एंड यूजर्स के लिए बहुत से किफायती और मिड-सेगमेंट हाउसिंग विकल्प प्रदान करते हैं.
उपरोक्त कारकों के अलावा, टियर- II और III शहर महानगरों में होने वाली परेशानियों जैसे कि जीवन की गुणवत्ता में कमी, रहने की अधिक लागत, महंगा परिवहन, अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और महंगी हेल्थकेयर और मंहगी शिक्षा आदि से मुक्त होते हैं. वर्तमान में, उभरते हुए टीयर- II और III शहरों में से कुछ इस प्रकार से हैं - पश्चिम में वडोदरा, सूरत, नासिक और नागपुर; दक्षिण में कोयंबटूर, कोच्चि, मैंगलोर, तिरुवनंतपुरम और विजाग; पूर्व में भुवनेश्वर और उत्तर में चंडीगढ़, मोहाली, पंतनगर, रुद्रपुर, लखनऊ, कानपुर, इंदौर और जयपुर.
नेशनल हाउसिंग बैंक - रेसिडेक्स के अनुसार, दो सालों की समयावधि में, टियर - II और III शहरों में कीमतों में लगातार और स्थिर बढ़ोत्तरी हुई है. सूरत में प्रॉपर्टी की कीमतों में अधिकतम 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, इसी प्रकार नागपुर में 14.72 प्रतिशत, रायपुर में 10.90 प्रतिशत, गुवाहाटी में 9.80 प्रतिशत और लखनऊ में 9.29 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है.
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